हमारी कार्यपद्धति हमारे वैचारिक अधिष्ठान का प्रतिबिंब –कैलाश चंद

श्रद्धेय जयदेव पाठक जन्मशताब्दी संगोष्ठी का हुआ आयोजन।

जयपुर. 25 अगस्त। आज भाद्रपद कृष्ण सप्तमी, विक्रम संवत् 2081, रविवार को राजस्थान शिक्षक संघ (राष्ट्रीय) द्वारा श्रद्धेय श्री जयदेव पाठक जन्मशताब्दी संगोष्ठी का जी डी बड़ाया स्मृति सभागार, संस्कृति महाविद्यालय, मानसरोवर, जयपुर में आयोजन किया गया।

कार्यक्रम का आरंभ मां सरस्वती और श्रद्धेय जयदेव पाठक के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन, माल्यार्पण, एवं सरस्वती वंदना से हुआ। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता माननीय कैलाश चंद, क्षेत्र कार्यकारिणी सदस्य, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, श्रीमान रमेश चंद्र पुष्करणा, अध्यक्ष, राजस्थान शिक्षक संघ (राष्ट्रीय) और मुख्य अतिथि श्रीमान बजरंग प्रसाद मजेजी रहे।

कार्यक्रम में राजस्थान शिक्षक संघ (राष्ट्रीय) के संरक्षक माननीय राजनारायण शर्मा, उमराव लाल वर्मा, रामावतार शर्मा, प्रहलाद शर्मा, अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ एवं राजस्थान शिक्षक संघ (राष्ट्रीय) के प्रदेश संगठन मंत्री घनश्याम, प्रदेश सभाध्यक्ष संपत सिंह जी, वरिष्ठ उपाध्यक्ष रवि आचार्य, प्रदेश अतिरिक्त मंत्री योगेश शर्मा, अशोक शर्मा की गरिमामई उपस्थिति रही।

संगठन के प्रदेश महामंत्री महेंद्र कुमार लखारा ने सभी अतिथियों का परिचय कराया। उन्होंने श्रद्धेय जयदेव पाठक के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि मैट्रिक परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के बाद 1942 में वे अंग्रेजो के विरुद्ध भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने अपना घर छोड़ दिया और आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लिया। भोजन कभी मिला तो कर लिया नही तो चने चबाकर समय गुजारा, कभी सोने को जगह नहीं मिली तो रेल्वे प्लेट फार्म पर ही सो गए लेकिन देशभक्ति की चिंगारी को बुझने नही दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आने पर वे राजस्थान में पूर्णकालिक प्रचारक बनकर आए। फिर संघ के विभिन्न दायित्वों का निर्वहन करते हुए अंत तक विद्याभारती के मार्गदर्शक रहे। उन्होंने राजस्थान शिक्षक संघ (राष्ट्रीय) को राज्य का सबसे बड़ा और प्रभावी संगठन बनाया। राष्ट्र के लिए सर्वस्व समर्पण और अपने लिए कुछ न लेने का उत्कृष्ट उदाहरण पाठक जी में ही देखा जा सकता है । अपने श्रेष्ठ और कर्ममय जीवन से अनगिनत कार्यकर्ताओ को प्रेरणा देकर उस महापुरुष ने उनके जीवन को संस्कारित कर दिया। उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम के साथ जन्म शताब्दी कार्यक्रमों की शुरुआत हुई है। अब प्रत्येक उपशाखा और जिला स्तर पर ये कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

हरियाणा और पंजाब के माननीय राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया के भेजे गए ऑडियो संदेश में उन्होंने कहा कि श्रद्धेय जयदेव जी पाठक के साथ उनका बहुत लंबा सफर रहा। उनको अपना आदर्श बताया। जिला, विभाग प्रचारक, विद्याभारती और शिक्षक संघ में कार्य करते हुए मुझे उनका सानिध्य प्राप्त हुआ । उन्होंने हमेशा स्वयं पर कम से कम खर्च करते हुए और अत्यंत मित्तव्यता से जीवनयापन करते हुए समाज को अधिकाधिक देने का प्रयास किया। आज मैं उन्हीं के दिए संस्कारों के कारण जीवन यात्रा में इन ऊंचाइयों तक पहुंच सका हूं। उन्होंने सभी शिक्षको से पाठक जी के आदर्शो को जीवन में अपनाने का आव्हान करते हुए उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री कैलाश चंद ने गुरु के महत्व को गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पाय, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय दोहे से प्रारंभ कर बताया कि पाठक जी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की उस देव दुर्लभ टोली के सदस्य रहे जिन्होंने राष्ट्रीय मूल्यों की स्थापना, संस्कृति की रक्षा, विश्व शांति और वसुधैव कुटुंबकम् के साथ-साथ समाज के कल्याण और शिक्षकों व विद्यार्थियों के हित के लिए अपना तन, मन, धन आदि सब कुछ अर्पण कर दिया। उन्होंने कहा कि हमे व्यक्ति की पूजा नही, बल्कि उसके गुणों की पूजा करनी चाहिए। पाठक जी जैसे महापुरुष के सद्गुणों को जीवन में उतारना चाहिए। उन्होंने कहा कि कार्य की सिद्धि के लिए उपकरणों का महत्व नहीं है बल्कि व्यक्ति की साधना ही उसे परिणाम तक पहुंचाती हैं । अपने मन, बुद्धि और आत्मा को शुद्ध करके व्यष्टि, सृष्टि, समष्टि और परमेष्ठी आदि चारो का एक दूसरे के साथ समन्वय कर व्यक्ति अपना सर्वांगीण विकास कर परम् वैभव की स्थिति तक पहुंच सकता है। उन्होंने पाठक जी के लिए कहा कि वे बाहर से तो बहुत कठोर थे परंतु आंतरिक मन से बहुत ही सहज, सरल और सुहृदय थे। अंत में उन्होंने श्रद्धेय जयदेव जी पाठक को इस गीत के साथ श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कार्यकर्ताओ में जोश और उत्साह भरा… वह जीवन भी क्या जीवन है जो काम देश के आ न सका, वह चंदन भी क्या चंदन है जो अपना वन महका न सका।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बजरंग प्रसाद ममेजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि हमारे आदर्श और राजस्थान शिक्षक संघ (राष्ट्रीय) के संस्थापक श्रद्धेय जयदेव जी पाठक का जन्म जन्माष्टमी के दिन 1924 में हिंडोन के फाजीलाबाद ग्राम में हुआ। माता के जल्दी देहांत के बाद पिता के ही साए में बाल्यकाल व्यतीत हुआ। पढ़ने में वे प्रारंभ से ही मेधावी रहे। बचपन से ही उनकी सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ बनने की इच्छा थी। परंतु भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रहने और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संपर्क में आने के बाद वे 1946 में अध्यापक की नौकरी छोड़कर संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गए। जिला प्रचारक, विभाग प्रचारक और विद्या भारती में विभिन्न दायित्वों का निर्वहन करते हुए 1954 में राजस्थान शिक्षक संघ के संस्थापक रहे। उन्होंने पाठक जी के जीवन के विभिन्न संस्मरण सुनाते हुए बताया कि पाठक जी सदैव संगठन के विस्तार, कार्यकर्ता निर्माण, प्रवास, शिक्षक और विद्यार्थी हित, त्याग, मितव्यता के साथ – साथ पद, प्रशंसा और सम्मान का त्याग आदि विभिन्न पहलुओं पर जोर देते थे। राजस्थान शिक्षक संघ (राष्ट्रीय) पाठक जी पर शीघ्र ही एक स्मारिका प्रकाशित करने जा रहा है।

संगठन के प्रदेशाध्यक्ष रमेश चंद्र पुष्करणा ने अपने उद्बोधन में कहा कि पाठक जी सदैव संगठन की सदस्यता पर जोर देते थे। उन्हीं के विचार और आदर्शो के कारण आज हमारा संगठन लगभग 2, 25000 से भी अधिक सदस्यों के साथ राजस्थान का सबसे बड़ा संगठन बन गया है। उन्होंने बताया कि प्रभावी संकुल रचना के कारण आज हम इतनी सदस्यता निश्चित समयावधि में पूर्ण कर पाए। इसके लिए उन्होंने सभी कार्यकर्ताओ का अभिनंदन एवं आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि पाठक जी सदैव यह कहते थे कि संगठन तभी ठीक प्रकार से चलता है जब उसके सभी कार्यकर्ता संगठन में हुए निर्णयों के अनुसार आचरण करें। हमारे बीच किसी बात को लेकर मतभेद हो सकते है मनभेद नही होने चाहिए क्योंकि हम सब भारत मां को परम वैभव तक पहुंचाने के एक ही राष्ट्रीय विचार को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने बताया कि वर्ष भर संगठन के प्रत्येक कार्यक्रम में श्रद्धेय जयदेव जी पाठक का छाया चित्र लगाया जाएगा और कार्यक्रम आयोजित किए जायेंगे। उन्होंने संगोष्ठी में पधारे सभी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं का आभार व्यक्त किया। इसके साथ ही संस्कृति महाविद्यालय के प्रबंधक श्री केशव जी बड़ाया को भी सम्मानित किया और सभी व्यवस्थाओं के लिए उनका आभार व्यक्त किया।

आज की संगोष्ठी के सम्पूर्ण कार्यक्रम का संचालन प्रदेश महामंत्री महेंद्र कुमार लखारा ने किया।

कार्यक्रम का समापन सामूहिक राष्ट्रगान के साथ हुआ । कार्यक्रम में सम्पूर्ण राजस्थान से बड़ी संख्या में कार्यकर्ता उपस्थित हुए।